कविता

प्रलय आने में अब देर नहीं

बनी धरती अंगारा
हर तरफ धधक रही ज्वाला
झुलस रहा भू का अंर्तमन
खो रही पृथ्वी, अपना संतुलन
पर्यावरण में फैला जहर
प्रदूषण का टूट रहा अंतकहर
हरयाली मिटा, वनों को काट
कर शोषण, भूमि कर डाली बंजर
फूट-फूट ज्वालामुखी सी रो रही
प्रकृति तोड़ संतुलन, कर विरोध रही
फिर भी ना समझें, कोई गुहार
लाकर आपदाएं लगा रही पुकार

जल,जीव-जंतु सब मिटते जा रहे
प्रकृति की गोद में सिमटते जा रहे

कर लो भू का तुम सरक्षण
प्रलय आने में अब देर नहीं

— रीना सिंह रचना

रीना सिंह गहलौत 'रचना'

कवयित्री नई दिल्ली