कविता

रोटी की अहमियत

हर प्राणी की जरूरत रोटी है
क्योंकि भूख सबको ही लगती है
और भूख का आखिरी विकल्प है रोटी।
दो जून की रोटी के लिए ही मानव
दिन रात भाग दौड़ करता है
तरह तरह के जुगाड़ करता है,
रोटी के लिए ही सतत संघर्ष करता है
हर कोशिश के पीछे होती है दो जून की रोटी
यह हमारी आपकी ही नहीं हर प्राणी की कहानी।
दो जून की रोटी की खातिर हर प्राणी
जाने कितना खून पसीना बहाता है
और सतत संघर्ष करता रहता है।
रोटी सिर्फ भूख ही नहीं मिटाती
हर रिश्ते की ताकत भी रोटी ही बनती,
मानव मानव की औकात का बताती है।
कोई कितना भी बड़ा आदमी हो
धन दौलत सुख सुविधाओं से भरा घर हो
चाहे जिस जाति धर्म मजहब का हो
चाहे जितना अमीर गरीब हो इंसान
पर रोटी से बड़ा कोई नहीं होता है।
दो जून को रोटी की खातिर ही
घर परिवार, अपनी माटी तक छूट जाती है,
हारी बीमारी सारी पीछे चली जाती है,
रोटी सब पर भारी पड़ जाती है।
चिलचिलाती धूप, भीषण ठंड या बरसात हो
दो जून की रोटी पहली जरूरत बन जाती है।
अच्छे अच्छों की औकात बता देती है
राजा हो रंक सबको श्रम की चक्की पिसाती है,
बिना परिश्रम दो जून की रोटी दिन में भी तारे दिखा देती है,
सबको एक लाइन में खड़ा कर देती है,
रोटी अपनी अहमियत का मतलब
बिना भेदभाव सबको बताती रहती है।
रोटी भूख से अपने रिश्ते का महत्व समय समय पर समझाती है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921