कविता

ई वी एम

घिरी हुई थी कोरवों के बीच में द्रोपदी सी 
सब मिल कर तैयार थे 
इज़्ज़त तेरी उघाड़ने में 
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन 
लाज रख ली तूने देश के 
लोकतंत्र की कोशिश तो बहुत थी 
पर तू बच गई वेश्या कहलाने से 
तार तार कपड़े होने से 
वह उतारू थे नग्न करने तुझे 
देश की छवि को ख़राब करने में 
तूने यह परिणाम देकर 
देश के लोकतंत्र की इज़्ज़त को बचा लिया 
कोरवों के मुहँ में ताले लटका दिए 
यह कौरव दल अभी न मानेगा 
अगली बार फिर कोई नया बखेड़ा लाएगा

— ब्रजेश गुप्ता

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020