नदी और सागर
नदी और सागर का संगम
जैसे स्त्री पुरुष का संगम
नदी शांत लज्जामय
समुंदर में आवेग उफान
नदी आतुर रहती है खुद को समर्पित करने सागर में
जैसे एक स्त्री पुरुष में
सागर उसे अपने आगोश में समा लेने को रहता बैचेन
जैसे एक पुरुष स्त्री को
नदी सागर में समाकार
मिटा देती है अस्तित्व अपना
और सागर कहलाने लगती है
नारी की भी तो यही कहानी है
अपने अस्तित्व को भूल
पुरुष में समा
उसके नाम के नाम से पहचानी जाने लगती है