कविता

नाटकबाज

हम सब नाटकखोर हैं 

नित करते नये नये नाटक 

मंदिर जाते मस्जिद जाते 

पड़े गीता कुरान रामायण 

रटते घट घट में व्याप्त है राम 

अल्लाह के हम सब बंदे 

फूटी आँख नहीं सुहाते 

हम इक दूजे को 

देख मुस्कुराते ऊपर से 

पर बैर भरा है भीतर

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020

One thought on “नाटकबाज

  • यथार्थ चित्रण हम सब नाटक करते हुए प्रतिक्षण किसी न किसी पात्र की भूमिका का ही निर्वहन कर रहे होते हैं। जो हम प्रदर्शित कर रहे हैं, वास्तविक रूप से हम हैं नहीं। जो हम हैं, उसे सामने आने नहीं देते।

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