तुम बिन हमने गान न गाए
तुमने जीना सिखलाया था, तुम बिन जीना सीख न पाए।
कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।
हमें नहीं तुमसे कुछ पाना।
हमको केवल साथ निभाना।
भले ही हमसे दूर रहो तुम,
गाते हैं हम तुम्हारा गाना।
तुम्हारे दर्द में डूबे थे हम, अपना दर्द कभी सुना न पाए।
कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।
तुम्हारे बिना, जीवन में रस ना।
तुम्हें रोकना, हमारे बस ना।
तुम्हारी नहीं, कोई मजबूरी,
खुश रह सको, वहां ही बसना।
बिन बंधन भी बँधे हुए हम, साथ नहीं हो, मान न पाए।
कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।
कदम-कदम यहाँ जाल बिछे हैं।
शातिराना षड्यंत्र, फंसे हैं।
लुटेरों ने निर्दय बन लूटा,
सिर्फ नेह, कुछ तार बचे हैं।
तुम नहीं, बस याद साथ हैं, यादों को हम, भुला न पाए।
कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।
तुम्हें जरूरत नहीं हमारी।
हमें जरूरत सदा तुम्हारी।
तुम्हारे साथ तो है जग सारा,
आश बची ना, कोई हमारी।
षड्यंत्रों के वार हैं झेले, तुम्हारे सिवा कुछ सोच न पाए।
कविता अब लिखते हैं केवल, तुम बिन हमने गान न गाए।।