कविता

अपना देश 

कितना सुंदर हैं अपना देश,

क्यों ललचाए हमें विदेश?

कलकल बहती गंगा-यमुना धारा,

पावन संस्कृति, सृष्टि सौंदर्य अशेष।।

मुकुट-सा हिमालय खडा शान से,

चरण पखारे हिंद महासागर प्रेम से,

नंदनवन कश्मीर, मनोहर वादियां,

सजी-धजी धरती रंग बिरंगे फूलों से।। 

धरा, गगन, खिली-खिली प्रकृति,

वैदिक संस्कार, सनातन संस्कृति,

योग-ध्यान का विश्व को देती संदेश,

धर्म, जीव दया, करुणा, भाव-भक्ति।।

अद्भुत शिल्प, कलाकृतियां अप्रतिम, 

सुंदर कलाकुसर, सजावट अनुपम,

भले घुमो, यहां-वहां, देखो विविध देश,

करे भारत दर्शन, पुनीत चारों धाम।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८