कविता
तुम कहते हो बेटियाँ
सौभाग्य से होती हैं
लेकिन क्या वो सच में
भाग्य लेकर पैदा होती हैं
लगा देता है एक बाप
अपनी सारी जमा पूँजी
लेकिन क्या बेटियाँ सच में
खुशियों की फसल काटती हैं
तुमसे कोई एक कलम भी माँगें
तो देने में जान निकलती है
माँ बाप तो विदा कर देते हैं
क्या बेटियाँ सिर्फ अमानत होती हैं
परायी बेटी का दुःख दुःख नहीं
अपनी बेटी दुःखी लगती है
ताउम्र बिता देती है जो तानों में
क्यों बहू हमेशा गैर ही होती है
क्यों नहीं सोचते तुम कभी
हर बात को खुद के ऊपर रखकर
जो बातें लगती जहर बेटी के लिए
क्यों बहू के लिए वरदान लगती हैं
मेरी बेटी के लिए कुछ न कहो
वो मेरी बेटी है मेरी कोख में पली है
क्या बहू किसी की बेटी नहीं
क्यों उसको हर पल अपमान की झड़ी है
तुम कहते हो जमाना बदल रहा है
कुछ लोगों के लिए बदल रहा होगा
जिस दौर से गुजरी थी जिंदगी मेरी
आज भी हर बेटी उसी दोराहे पर खड़ी है
— वर्षा वार्ष्णेय