गीत/नवगीत

निकली विष की प्याली है

सब कहते काली, काली है, वह, कानूनन घरवाली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
झूठ और कपट की देवी।
शातिर वह पैसों की सेवी।
पैसा जाति, पैसा धर्म है,
बेईमान प्राणों की लेवी।
जाति झूठ और धर्म झूठ है, तन फर्जी, मन जाली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
रूप नहीं, कोई रंग नहीं है।
जीने का कोई ढंग नहीं है।
संबन्ध बनाकर वह है लूटे,
विषकन्या! कोई संग नहीं है।
काया की ही नहीं, कलुष वह, अन्तर्तम से काली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
केवल धन की लूट न करती।
रक्त पिपासू प्राण भी हरती।
षिकार फंसा जो, कभी न छोड़ा,
सब कुछ ले, सम्मान भी हरती।
पीड़ित कर ही, खुषी मिले उसे, रूदन पर, बजाती ताली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)