निकली विष की प्याली है
सब कहते काली, काली है, वह, कानूनन घरवाली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
झूठ और कपट की देवी।
शातिर वह पैसों की सेवी।
पैसा जाति, पैसा धर्म है,
बेईमान प्राणों की लेवी।
जाति झूठ और धर्म झूठ है, तन फर्जी, मन जाली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
रूप नहीं, कोई रंग नहीं है।
जीने का कोई ढंग नहीं है।
संबन्ध बनाकर वह है लूटे,
विषकन्या! कोई संग नहीं है।
काया की ही नहीं, कलुष वह, अन्तर्तम से काली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।
केवल धन की लूट न करती।
रक्त पिपासू प्राण भी हरती।
षिकार फंसा जो, कभी न छोड़ा,
सब कुछ ले, सम्मान भी हरती।
पीड़ित कर ही, खुषी मिले उसे, रूदन पर, बजाती ताली है।
सुधा समझ जिसे, पीने चले थे, निकली विष की प्याली है।।