कविता

मैं नवोदय चाहूं!

मुक्त हूं मैं रूढ़िवादी सोच से,

उन्मुक्त नहीं।

स्वतंत्र हूं अवांछनीय बंधनों से,

स्वच्छंद नहीं।।

संस्कारी मन, सु-शील वर्तन मेरा, 

हौसला बुलंद है,

ज्ञान, शिक्षा, कौशल संबल मेरा,

पांखों में बल हैं।।

संकीर्ण  विचारधारा मुझे नामंजुर, 

मैं नवोदय चाहूं,

व्यक्तित्व निखारूं अपने बलबूते पर,

मैं सर्वोदय चाहूं।।

लूं ऊंची उड़ान, छूं लूं नीलाभ गगन,

अब मुझे रुकना नहीं,

राहों में बिछे हो कंकड़, हो शूल, चुभन,

अब मंजिल दूर नहीं।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

2 thoughts on “मैं नवोदय चाहूं!

  • मुक्त हूं मैं रूढ़िवादी सोच से,

    उन्मुक्त नहीं।

    स्वतंत्र हूं अवांछनीय बंधनों से,

    स्वच्छंद नहीं।।

    संस्कारी मन, सु-शील वर्तन मेरा,

    हौसला बुलंद है,

    ज्ञान, शिक्षा, कौशल संबल मेरा
    वाह! समसामयिक वर्तमान उच्छ्रूखलता के युग में यही अपेक्षित है।

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