कविता
आम
ये आम पीले-पीले
होते हैं बड़े रसीले
कोयल को ये भाते
बच्चों को ललचाते
ग्रीष्म ऋतू में पकते
अमराई निखर जाते।
केले
ये प्यारे मीठे-मीठे केले
दिखते दिखते पीले-पीले
ये बंदर को खूब ललचाते
और बच्चों के मन को भाते
ये घेर-घेर मे खूब हैं फालते
और ये कदली वन कहलाते।
नीबू
ये नीबू हैं खट्टे-खट्टे होते
जो हरे-पीले यह दिखते
ये गुणों के, भण्डार होते
और गर्मी में ठंडकता देते
ये गले को, तरावट करते
इसके शरबत सबको भाते।
— अशोक पटेल “आशु”