लघुकथा – युग सत्य
बंदर बस्ती में आया तो कुत्ता बंदर को देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा । बंदर ने देखा और बोला -“अबे क्यों भौंक रहा है ? तुम्हारे मालिक ने खेतों में फसल बीजना छोड़ दिया है तभी तो हमें बस्तियों में आना पड़ रहा है ।
जब तुम्हारा मालिक फसल बीजता था तब हमें भी तो वहां से कुछ खाने को मिल ही जाता था , और तुम्हें भी तो खेतों की रखवाली के बदले दाल – फुलका मिल जाता था।
अब तुम्हारे मालिक ने खेत बीजना ही छोड़ दिया तो तू भी तो उसके लिए अब बेकार हो गया है।
इसलिए अब वह तुझे भी दाल -फुलका नहीं खिलाना चाहता।
क्योंकि उसे अब खेतों की रखवाली के लिए तो तेरी जरूरत ही नहीं रही।
अब तुझे भी तो उसने घर से निकाल दिया है। तेरा भी तो दाल फुलका बंद हो गया है ।”
दोनों की बातचीत सुनने के लिए और कुत्ते इकट्ठे हो गए थे। कुत्तों का झुंड बंदर की बातें ध्यान से सुन रहा था। बंदर ने आगे कहा-” वह जमाना गया जब हमारे झुंड के लिए एक कुत्ता ही काफी होता था ।अब तो तुम्हारे झुंड के लिए मुझ जैसा एक बंदर ही काफी है।”
कुत्तों ने हां में गर्दन हिलाई।
बंदर ने कहा-” चलो आज के बाद हम दोस्त बन जाते हैं।” कुत्तों ने दोस्ती की हामी भरते हुए अपनी-अपनी पूंछ हिलाई। कुत्ते बंदर को सुनकर चले गए। बंदर छलांगें मारता हुआ पूरी बस्ती में उधम मचाता रहा। अब दोनों की दुश्मनी दोस्ती में जो बदल गई थी।
— अशोक दर्द