कविता

हाथों में हाथ लिए

हाथों में हाथ लिए चुने थे परिजात!
छुपा-छुपी, लंगड़ी, गुड्डे की बारात!
पतंगें उड़ाना, वो मांझे को लपेटना!
आँगन में गिरे कच्चे आम बाँट खाना!

फूलों की क्यारियों में तितलियां उड़ाना!
एक-दूजे की चुगली, कभी मार से बचाना!
वो कच्चे धागों का रेशमी नाजुक बंधन!
रक्षा-सूत्र अनूठा, अनमोल प्यार-गंठन !

दो नदियों का संगम, विश्वास का सागर !
सदभाव, समर्पण, सौहार्द का आगार!
संवेदनाओं की रेशम-लड़ियों का संसार!
प्यार-दुलार का उफनता विशाल भंडार!

भाई-बहन का अदभुत उत्सव रक्षाबंधन!
द्रोपदी-श्रीहरि के रक्षा-सूत्र का विराट दर्शन!
सोलह श्रृंगार कर आई बहन का भाई अनुपम!
कर्णावती की राखी का उत्सव राखी पूनम!

दर्या को पूजते, नाचते, गाते मछुआरों का समागम!
लहरों पे सवार मल्लाहों का पर्व नारळी पूनम!
विपत्ति में भाई-बहन की मजबूत ढाल, रक्षाबंधन !
निस्वार्थ अनुबंध, रक्षासूत्र, कवच कुंडल, अटूट बंधन!

— कुसुम अशोक सुराणा

कुसुम अशोक सुराणा

मुंबई महाराष्ट्र