राजनीति

फ्रूट जूस बेच रही कंपनियां व उपभोक्ता गंभीरता से ध्यान दें

वैश्विक स्तरपर दुनियां के हर देश में मानवीय स्वास्थ्य के ऊपर गंभीरता से ध्यान दिया जाता है। वर्तमान समय में हर देश अपने-अपने वार्षिक बजट में स्वास्थ्य विभाग को अधिक धन एलोकेट करने की कोशिश करता है ताकि अपने स्वास्थ्य विभाग को आधुनिक संसाधनों व इंफ्रास्ट्रक्चर से अधिक मजबूत किया जा सके। विशेष रूप से यह गंभीरता कोविड-19 के भयंकर दुष्परिणाम के कारण आई है,क्योंकि इसके भीषण नकारात्मक नतीजे को दुनिया के हर देश ने भुगते है। स्वास्थ्यसेवा को गंभीरतासे लेनें की बात आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि भारत की खाद्य सुरक्षा मानक एजेंसी एफएसएसएआई ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है कि फ्रूट जूस बेच रही कंपनियों के लेबल,खड्डे, डब्बे पर 100 प्रतिशत केवल फलों के रस का दावा किया जाता है जो के कानून के हिसाब से बिल्कुल उचित नहीं है, क्योंकि खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम 2008 में 100 प्रतिशत दावा करने का कोई प्रावधान है ही नहीं,इसलिए इस दावों को सभी कंपनियां 1 सितंबर 2024 से पहले सभी जूस प्री प्रिंटेड पैकेज सामग्रियों से हटाने का आदेश जारी किया गया है क्योंकि इसका सीधा-सीधा संबंध मानवीय स्वास्थ्य से है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम 2018 में 100प्रतिशत दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है। 

साथियों बात अगर हम हाल ही में जारी एफएसएसएआई के आदेश की करें तो, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सभी फूड बिजनेस ऑपरेटर (एफबीओ) को अपने प्रोडक्ट पर 100 प्रतिशत फलों के जूस के दावे को हटाने का निर्देश दिया है,खाद्य नियामक ने कहा कि इस तरह के दावे भ्रामक हैं, खासकर उन स्थितियों में जहां फलों के रस का मुख्य घटक पानी है और प्राथमिक घटक यानी जिसके लिए दावा किया गया है, केवल सीमित सांद्रता (कॉन्संट्रेशन) में मौजूद है। वहीं फलों के रस को पानी और फलों के सांद्रण का उपयोग करके पुनर्गठित किया जाता है। एफबीओ को खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियमन, 2011 के नियमों के तहत फलों के जूस के मानकों का अनुपालन करने के लिए कहा गया है। देशभर में तमाम ब्रांड के डिब्बाबंद या पैकेज्ड जूस पर 100 प्रतिशत फलों का जूस लिखने का दावा किया जाता रहा है। फलों का जूस हम सभी पीना पसंद करते हैं,क्योंकि फलों के जूस को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन क्या हम जो जूस पी रहे हैं उसमें 100 प्रतिशत जूस है? हाल ही में खाद्य उद्योग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भ्रामक दावों को रोकने के उद्देश्य से एफएसएसएआई ने सभी फूड बिजनेस ऑपरेटर (एफबीओ) को अपने प्रोडक्ट पर 100 प्रतिशत फलों के जूस के दावे को हटाने का निर्देश दिया है। इस अधिदेश में प्रींटेड लेबल किसी भी दावे के साथ-साथ वस्तुओं के विज्ञापन भी शामिल हैं। एफएसएसएआई के अनुसार, यदि एडेड न्यूट्रिशन स्वीटनर 15 ग्राम/किग्रा से अधिक है, तो प्रोडक्ट को स्वीट जूस लेबल किया जाना चाहिए. इसके अलावा, निर्देश में कहा गया है कि ब्रांडों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इंग्रीडिएंट लिस्ट का मसौदा तैयार करते समय कंसन्ट्रेट से रेकॉन्स्टिटूड जूस के नाम के सामने रेकॉन्स्टिटूड शब्द का उल्लेख किया गया है।एफएसएसएआई ने 100 प्रतिशत फलों के जूस के रूप में विज्ञापन वाले प्रोडक्ट के बारे में उनके भ्रामक दावों के लिए ब्रांडों को फटकार लगाई है।वास्तव में, ये अक्सर कई प्रकार के रेकॉन्स्टिटूड फलों के जूस बन जाते हैं।

एफएसएसएआई बताता है, फलों के जूस का मेन इंग्रीडिएंट पानी है और प्राइमरी इंग्रीडिएंट, जिसके लिए दावा किया गया है, केवल सीमित कंसन्ट्रेटशन में मौजूद होता है, या जब फलों के जूस को पानी और फलों के कंसन्ट्रेट या गूदे का उपयोग करके रेकॉन्स्टिटूड किया जाता है। इसने स्पष्ट किया है कि खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 के अनुसार, 100 प्रतिशत दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है।आधिकारिक बयान के अनुसार, कंपनियों को ऐसे दावों वाली पहले से प्रिंट सामग्रियों को भी 1 सितंबर 2024 तक खत्म करने का निर्देश है एफएसएसएआई के ध्यान में आया है कि कई खाद्य कंपनियां विभिन्न प्रकार के डिब्बाबंद (पुनर्गठित) जूस को 100 प्रतिशत फलों के जूस होने का दावा करके गलत तरीके से विपणन कर रही हैं। खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 के अनुसार, डिब्बाबंद जूस को 100 फीसदी फलों के रस होने का दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस तरह के दावे भ्रामक हैं, खासतौर पर उन स्थितियों में जहां फलों के रस का मुख्य घटक पानी है और फल के रस का सीमित मात्रा में उपयोग किया जाता है। इससे पहले, अप्रैल मे एफएसएसएआई ने एफबीओ को हेल्दी ड्रिंक और एनर्जी ड्रिंक के रूप में बेचे जा रहे प्रोप्राइटरी फूड को फिर से कैटेगराइज करने के लिए कहा था. इसने उन्हें अपनी वेबसाइटों पर हेल्दी ड्रिंक/एनर्जी ड्रिंक की कैटेगरी से ऐसे ड्रिंक को हटाने या डी-लिंक करके गलत वर्गीकरण को सुधारने और ऐसे प्रोडक्ट को मौजूदा कानून के तहत प्रदान की गई उचित कैटेगरी में रखने का निर्देश दिया। 

साथियों बात अगर हम खाद्य सुरक्षा एवं मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम 2018 को जानने की करें तो, खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने भारत में खाद्य व्यापार संचालकों द्वारा खाद्य उत्पादों पर विज्ञापन और दावों की निगरानी के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 जारी किए हैं। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा-53 के तहत झूठे विज्ञापन और दावे प्रतिबंधित हैं और दंडनीय अपराध हैं। एफएसएसएआई  भारत में विभिन्न खाद्य व्यापार संचालकों द्वारा किए गए विभिन्न स्वास्थ्य दावों के बारे में सोशल मीडिया सहित मीडिया रिपोर्टों की निगरानी कर रहा है। इसने उपरोक्त की निगरानी और विनियमन के लिए एफएसएस (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 जारी किए हैं। झूठे विज्ञापन और दावे निषिद्ध हैं और एफएसएस अधिनियम, 2006 की धारा-53 के तहत दंडनीय अपराध हैं।किए गए हर दावे को विनियमन में दिए गए मानदंडों को पूरा करना चाहिए, बिना झूठ या अतिशयोक्ति के। पोषक तत्व कार्य और अन्य कार्यात्मक दावे वर्तमान वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित होने चाहिए। दावा किए गए स्वास्थ्य लाभ अच्छे नैदानिक ​​अभ्यास के अनुसार, स्थापित शोध संस्थानों द्वारा किए गए नैदानिक ​​अध्ययनों से सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण परिणामों पर आधारित होने चाहिए और उन्हें सहकर्मी की समीक्षा वाली वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित किया जाना चाहिए।अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, लाइसेंसिंग सह नामित अधिकारी (केंद्रीय और राज्य स्तर) एफबीओ को वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए कह सकते हैं। ऐसा करने में विफल रहने या असंतोषजनक प्रतिक्रिया के मामले में, एफबीओ को अपने दावों को संशोधित करना होगा। यदि एफबीओ उपरोक्त में से कोई भी कार्य करने में विफल रहता है, तो उन पर लाइसेंस के निलंबन/रद्दीकरण आदि के साथ-साथ 10 लाख रुपये तक का जुर्माना (एफएसएस अधिनियम2006 की धारा 53 के तहत) लगाया जाएगा।इसके अतिरिक्त, एफएसएसएआई ने एक विज्ञापन निगरानी समिति गठित की है जो सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर एफबीओ द्वारा बनाए गए उत्पादों के विज्ञापनों की नियमित निगरानी करती है।

साथियों बात अगर हम भारतीय खाद्यसुरक्षा एव मानकप्राधिकरण (एफएसएसएआई) को जानने की करें तोइसकी  स्थापना खाद्य सुरक्षा एवं मानक, 2006 के तहत की गई है, जो विभिन्न अधिनियमों और आदेशों को समेकित करता है जो अब तक विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में खाद्य संबंधी मुद्दों को संभालते रहे हैं। इसका का गठन खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने और मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उनके निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने के लिए किया गया है।खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की मुख्य विशेषताएं, विभिन्न केंद्रीय अधिनियम जैसे खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973,वनस्पति तेल उत्पाद (नियंत्रण) आदेश,1947, खाद्य तेल पैकेजिंग (विनियमन) आदेश, 1988, विलायक निकाले गए तेल, डी-ऑइल मील और खाद्य आटा (नियंत्रण) आदेश, 1967, दूध और दूध उत्पाद आदेश, 1992 आदिएफएसएस अधिनियम, 2006 के लागू होने के बाद निरस्त हो गए।अधिनियम का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा और मानकों से संबंधित सभी मामलों के लिए बहु-स्तरीय,बहु-विभागीय नियंत्रण से एकल कमांड लाइन की ओर बढ़ते हुए एकल संदर्भ बिंदु स्थापित करना है।इस उद्देश्य के लिए,अधिनियम एक स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण-भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की स्थापना करता है जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। एफएसएसएआई  और राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को लागू करेंगे।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अटेंशन प्लीज! फ्रूट जूस बेच रही कंपनियां व उपभोक्ता गंभीरता से ध्यान दें।खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम 2018 में 100 प्रतिशत दावा करने का कोई प्रावधान नहीं  एफएसएसएआई ने फ्रूट जूस बेच रही कंपनियों को 100 प्रतिशत फलों का रस का दावा 1 सितंबर 2024 से पहले हटाने का आदेश सराहनीय है। 

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया