कविता

बाल श्रम

यह बालक हैं 

इन्हें बालक ही रहने दो 

यह दिन इनके खेलने पढ़ने के हैं 

इनके हाथों को खिलोने 

पढ़ने को पुस्तक चाहिए 

इनसे चाय के कप न धुलवाओं 

हाथों में औज़ार न थमाओं 

आग की भट्टी से दूर रहने दो 

यह नाजुक बदन हैं 

इन्हें दुत्कार की नहीं 

प्यार की जरूरत है

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020