कविता

मेघ हुए संकुचित

सिमट गये अब मेघ भी,
नहीं कहीं जल धार।
प्रकृति में अब रही नहीं,
मानों वो रस धार।।१।।

चिंतित उपवन झुलस गये,
चातक है लाचार।
मेघ अब के कहां गये,
कैसा है ये सार।।२।।

मधुवन में गोपियों का,
पीड़ित प्रेम उदास।
निहारती प्रतीक्षा में,
मुरलीधर का रास।।३।।

प्रिय राधिके तुम छेड़ो,
कादम्बिनी सा राग।
सांसें अब संकुचित हैं,
भर दो प्रेम पराग।।४।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)