कविता

संसार से भागे फिरते हो

क्यों मन मलिन तेरा सखे
क्या याद किसी की आई है?
बैठे हो सरि के कूल पर
दिखती तेरी परछाई है।

क्योंकर अचंभित हो गए तुम
यह नूपुर नहीं मन की वीणा,
सुन लेते जो अपने दिल की
नहीं पड़ता घुट घुट यूँ जीना।

वह आई थी सब कुछ तज कर
अपने जान को प्राण बनाने को,
स्पंदन दिल की सुन ना सके
क्या कहेगी वह जमाने को।

तुमने ही तो उसके दिल पर
किया था वार प्यार से
कैसे तुमने यह कह दिया
आ गई हो किस अधिकार से?

तुमने जो आघात किया
सोचे हो उस पर क्या बीता
सरि के कूल पर यूँ बैठ बैठ
जीवन जिओ रीता रीता।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]