कविता

मिलने की प्यास

ये दिल बड़ा आतुर,और  कितना चंचल है
जब याद सजनी की आये,होता विकल है
तन्हाई मे ये कभी हंसाता कभी रुलाता है
जब पास आ जाये तो वह घबरा जाता है।

हवाओं का झोंका, जब कभी भी आता है
एक मीठे दर्द का, अहसास भी दिलाता है
लगता है कोई  मेरे आसपास आ जाता है
विरहा में भी, मिलन  की प्यास जगाता है।

तन्हाई,और जुदाई, बार-बार क्यो आती है
और फिर यह  सिलसिला क्यों  दुहराती है
मिलने का एक ख्वाब भी धरी रह जाती है
वही सुनापन और तन्हाई, ये रुला जाती है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578