मिलने की प्यास
ये दिल बड़ा आतुर,और कितना चंचल है
जब याद सजनी की आये,होता विकल है
तन्हाई मे ये कभी हंसाता कभी रुलाता है
जब पास आ जाये तो वह घबरा जाता है।
हवाओं का झोंका, जब कभी भी आता है
एक मीठे दर्द का, अहसास भी दिलाता है
लगता है कोई मेरे आसपास आ जाता है
विरहा में भी, मिलन की प्यास जगाता है।
तन्हाई,और जुदाई, बार-बार क्यो आती है
और फिर यह सिलसिला क्यों दुहराती है
मिलने का एक ख्वाब भी धरी रह जाती है
वही सुनापन और तन्हाई, ये रुला जाती है।
— अशोक पटेल “आशु”