कविता

आसान नहीं पिता होना

देखा है पिता को सबके
अरमानों की झोली ढोते हुए
उसे पूरा करने में खुद को खोते हुए|

उफ्फ कभी नहीं किया
बच्चों की खुशियों को ही जिया|

हमारी फरमाइशों की कतार को
उन्हें पूरा करते पाया|

उनकी फरमाइश के नाम पर
उन्हें बारिश में पकौड़े
और बस चाय ही मांगते पाया|

कैसे गिनाए कोई उनकी खासियत
पिता होते ही है ऐसी शख्सियत|

किस मिट्टी से होते हैं वह बने,
जिम्मेदारियों से होते हैं सने,
बच्चे जब होते कामयाब
छूमंतर हो जाती है सारी उलझने|

पिता सच में सख्त नहीं होते
होते हैं वह अनुशासित|

कितने मजबूत नींव होते हैं वो,
कितना भी हो बोझ लड़खड़ाते नहीं जो|

आज एक छत देने से हम हैं कतराते
सदियों तक हमारी जिम्मेदारी रहे उठाते|

जमी तो उन्होंने ही दिया
तभी तो हमारी उड़ान
आसमां तक हो पायी,
आज भी झांक के जो देखा
पिता की आंखों में
सिर्फ और सिर्फ बच्चों की
खुशियां ही नजर आयी|

सच पिता होना नहीं होता आसान|

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com

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