गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नज़रे करम की आस लगाए हुए हैं हम
राह में जिसकी नजरें बिछाए हुए हैं हम

गुरबत के किस्सों को दबाए हुए हैं हम
पहाड़ गमों के अबतक उठाए हुए हैं हम

लकीरों को बदलेगा क्या ही कोई नजूमी
यूँ वक्त के हाथों बहुत सताए हुए हैं हम

बातों ही बातों में वो हाल मेरा जो पुछा
दिल ही दिल में अपना बनाए हुए हैं हम

उल्फत मेरे दिल में जगा गया है जबसे
तबसे ख्वाब आंखों में बसाए हुए हैं हम

चैंन, सुकून, नींद अपने गंवाए हुए हैं हम
पागल,दीवाना अब तो कहाए हुए हैं हम

— सपना चन्द्रा

सपना चन्द्रा

जन्मतिथि--13 मार्च योग्यता--पर्यटन मे स्नातक रुचि--पठन-पाठन,लेखन पता-श्यामपुर रोड,कहलगाँव भागलपुर, बिहार - 813203

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