वृक्षों पर अनाचार”
बेजुबान वृक्षों की चीत्कार सुनो,
कुल्हाड़ियों द्वारा उनपर होते प्रहार सुनो,
बे- घर होते पक्षियों की गुहार सुनो,
उन नन्हें से वृक्षारोही गिलहरियों की पुकार सुनो,
वन्यजीवों पर हो रहे अत्याचार सुनो,
वृक्षों के नष्ट होते परिवार सुनो,
राहगीरों को सताती धूप की मार सुनो,
वृक्षों का हम हुए उपकार सुनो,
पृथ्वी के नष्ट होते श्रृंगार सुनो,
बूढ़ी पृथ्वी का दुख भरा संसार सुनो,
वृक्षों पर हो रहे अनाचार सुनो।।
— ख्यालती टंडन