गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अस्सी करोड़ को जो राशन दिला रहे हो।
इस देश को कसम से भिक्षुक बना रहे हो।

कितने करोड़ लोगों की मुफलिसी मिटी है,
गिनती नहीं हुई तो कैसे बता रहे हो?

दो-चार साल की कुछ बातें नहीं बताते,
पच्चीस साल वाले सपने दिखा रहे हो।

इस सृष्टि में निरंतर बदलाव ही नियम है,
बदलाव के नियम की खिल्ली उड़ा रहे हो।

पचहत्तरी हुए हो, थकते नहीं कभी तुम,
पूरा शतक करोगे, खुलकर जता रहे हो।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)

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