कविता

चलते चलते मंजिल मिल ही जाएगी

मिल ही जाएगी मंजिल उन्हें जो चलते जाएंगे
वो कैसे पार जाएंगे जो बैठे रहेंगे किनारे
कर्म तो करना ही पड़ेगा जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए
कुछ नहीं कर पाओगे जो रहोगे दूसरों के सहारे

चलना तो पड़ेगा कहीं पहुंचने के लिए
ढूंढनी पड़ेगी खुद ही अपनी डगर
निरंतर आगे बढ़ते रहना ही है ज़िंदगी
जो रोकोगे कदम सब कुछ जाएगा ठहर

चलना पड़ेगा समय के साथ Stay
वरना पिछड़ जाओगे सब से
हाथ से न जाने देना उस अवसर को
किस्मत मौका दे रही थी जो कब से

भाग्य के भरोसे कुछ नहीं मिलेगा
कर्म की किश्ती का पतवार चलाना होगा
खाना अपने आप मुंह में नहीं जाएगा
उसके लिए तो हाथ हिलाना होगा

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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