गीत/नवगीत

मैं अभी हारा नहीं हूँ

शूल-पत्थर की डगर है तेज़ धाराएँ-भँवर हैं
सामने भूधर खड़ा है शत्रु बन तूफाँ अड़ा है
धूल पलकें मूँदती है पग को ठोकर टोकती हैं
किसको लेकिन ये खबर है लक्ष्य पर मेरी नज़र है
रोक ले चट्टान जिसको मैं भी वह धारा नहीं हूँ
मैं अभी हारा नहीं हूँ।

सामने प्रतिकूलता को पीठ ना मैंने दिखाई
आयी सीना ताने बाधा पर सदा मुँह की है खायी
हौसलों ने ना कभी मैंने समय से हार मानी
काल के माथे लिखूँगा मैं सफलता की कहानी
मान लूँ अपनी पराजय मैं वह बेचारा नहीं हूँ
मैं अभी हारा नहीं हूँ।

था बहुत सागर बड़ा पर राम को कब रोक पाया
सामने थे काल पर घनश्याम ने सबको हराया
धीरता के सामने कठिनाइयाँ भी दुम दबातीं
साधना मन से करो तो बिजलियाँ भी पथ दिखाती
दफन कर दूँ सपन अपने मैं वह हत्यारा नहीं हूँ
मैं अभी हारा नहीं हूँ।

चूम लूँ जब तक न मंजिल ना कभी आराम मुझको
विजय श्री से वरण तक है भला क्या काम मुझको
शिखर पर मेरी ध्वजा की एक दिन जयकार होगी
मेरी मेहनत की लकीरें गगन पर साकार होगी
हूँ अडिग ध्रुव-सा मगर टूटा हुआ तारा नहीं हूँ
मैं अभी हारा नहीं हूँ।

— शरद सुनेरी

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