हम
मत कहो अंधेरा है जग में, कहने से कब उजियार हुआ।
इक दीप जला जब जब भू पर, जगमग जगमग संसार हुआ।।
अंधियारा हारा है बेशक, लघु कीटों से, लघु दीपों से।
बस तनिक परिश्रम कर, देखो, मिलते हैं मोती सीपों से।।
आंधी से भी लड़ना सीखो, टकरा जाओ तूफानों से।
अज्ञान – अंधेरा जहां दिखे, मेटो दृढ़ शुचि अभियानों से।।
हमने शावक के गिने दांत, सूरज को लीला बचपन में।
इतराया जब सागर हमसे, पीया – बांधा था पलभर में।।
दुनिया के शून्य प्रदाता हम, इंद्रासन के रखवाले हैं।
शरणागत के रक्षार्थ स्वयं, रघु, शिवि, दधीचि, मतवाले हैं।।
हम सगर भगीरथ से उद्यत, गंगा को भू पर ले आते।
हम वनवासी, हम संन्यासी, हम नीलकंठ भी कहलाते।।
हम ग्रामदेवता, कर्मवीर, हम अर्जुन – भीम प्रतिज्ञा हैं।
दशरथ मांझी के अटल परशु, हम पंचसती की संज्ञा हैं।।
हम तुलसी, कबिरा, बाल्मीकि, सुखदेव, व्यास, बरदाई हैं।
ग्रह – नक्षत्रों के प्रथम गणक, शस्त्रास्त्रों की निपुणाई हैं।।
पन्ना, पद्मिनि, लक्ष्मीबाई, गुरु, फतह, जोरावर बैरागी।
हम भूषण की विरुदावलि हैं, गोरा – बादल भू अनुरागी।।
बसु, आर्यभट्ट, भाभा, कणाद, हम इसरो के संस्थापक हैं।
हम लोकतंत्र सबसे बढ़कर, हम सेवक हैं, हम शासक हैं।।
हम संस्कार, हम संस्कृति भी, हम जगत गुरु, धर्मोन्नायक।
हम वसुधा-कुल, सर्वे सुखिनः, जैसे मंत्रों के परिचायक।।
हम वन में गृही, गृही वन में, वन – गृह में मेल सर्जना हैं।
हम अतिथि, प्रकृति, सद्कर्म व्रती, मानवता हेतु बंदना हैं।।
हे दीनबंधु! अवधेश सुनो, हम सियाराम अनुगामी है।
फिर रामराज्य लाने वाले, हम दृढ़ प्रतिज्ञ जग नामी हैं।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध