कहानी

अपने-अपने कारण

मुरादाबाद जंक्शन का वातानुकूलित उच्च श्रेणी प्रतीक्षालय सामान्य रूप से भरा था। न तो बहुत अधिक भीड़ थी कि नवीन आगंतुकों के लिए स्थान ही न हो और न ही उसे खाली कहा जा सकता था। उसने प्रवेश करते ही प्रतीक्षालय में विहंगम दृष्टि डाली ताकि वह अपने लिए स्थान तलश सके। चारों दिशाओं में उसके बैठने के लिए स्थान उपलब्ध था। एक यात्री के लिए स्थान ही कितना चाहिए? उसके पास तो सामान भी अधिक नहीं था। केवल एक बैग। उसने ऐसी सीट का चयन किया, जिस पर सीधे एसी की हवा न आ रही हो। वह सीधे एसी में बैठना कभी सुविधाजनक नहीं पाता। एक सीट पर अपना बैग रखा और दूसरी पर बैठ गया।

सामने जमीन पर एक व्यक्ति पड़ा हुआ था। उसके पास कोई सामान नहीं था। कपड़े भी बेतरतीव थे। अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि वह यात्री नहीं था। प्लेटफार्म पर पड़े रहकर समय पास कर रहा था। शायद अस्वस्थ रहा हो। कपड़ों से कुली लग रहा था। चारों तरफ बैठे यात्रियों में उसे कुछ विशेष दिखाई नहीं दिया। सामने की सीट पर जाकर उसकी दृष्टि ठहर गयी।

सामने की सीट पर दो किशोर और किशारी, नहीं, शायद किशोरावस्था से युवावस्था में सद्य प्रवेशित युवक-युवती बैठे थे। बहुत अधिक सुन्दर नहीं कहा जा सकता था, किन्तु किशारावस्था व युवावस्था दोनों के आकर्षण व सौन्दर्य से परिपूर्ण थे। युवक युवती से लगातार बातें करने के प्रयास में था किन्तु युवती अपने मोबाइल में मशगूल थी। युवक की उपस्थिति उसे सुरक्षित अनुभव करा रही थी, तो युवक की उसे कोई चिन्ता नहीं था। युवक के प्रति उसके व्यवहार में एक लापरवाही प्रदर्शित हो रही थी। युवक के चेहरे पर उससे बातें करने की ललक और बैचेनी दोनों सहजता से देखी जा सकती थीं।

युवक-युवती के कंधे पर हाथ रखता है। युवती कोई प्रतिक्रिया नहीं देती। काफी देर तक वह युवती के कंधे को सहलाता रहता है। युवक युवती को खींचकर अपनी तरफ करता है और युवती को अपने से सटा लेता है। युवती का सिर युवक के कंधे पर टिक जाता है। युवती की गतिविधियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह पूर्ववत अपने मोबाइल पर लगी रहती है।

युवक युवती के गाल को सहलाता है। युवती पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। युवक युवती के गाल को अपनी उँगलियों से मसलता है। युवती मोबाइल पर व्यस्त है। युवक की बैचेनी उसके चेहरे से स्पष्ट है। ऐसा लगता है कि वह युवती के आगोश में समा जाना चाहता है। वह युवती को जी-जान से चाहता है। युवती युवक की बाँहों में थी। युवती के कपोल युवक के मुँह के अत्यन्त निकट थे। ऐसा लगता था, अगले ही पल युवती के होठों पर अपने होठ रख देगा। सार्वजनिक स्थान के संकोच ने ही शायद उसे रोक रखा था। युवती को उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, क्योंकि उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर था। आसपास के परिवेश को तो क्या वह तो अपने प्रेमी को ही नहीं देख रही थी। वह उसके कपोलों से खेल भी रहा था; किन्तु युवती मोबाइल में ही लगी रही। जैसे उसे युवक की उपस्थिति का अहसास ही न हो।

इस दौरान युवक अपनी बोरियत दूर करने के लिए तीन बार बाहर निकल कर प्लेटफार्म पर जाकर चक्कर लगा आया था। युवती को आकर्षित करने के सारे प्रयास व्यर्थ जा रहे थे। अन्त में युवक ने झुंझलाकर, युवती के चेहरे को दोनों हाथों में लेकर कहा, ‘‘क्या जान! मैं केवल तुम्हारे लिए ही अपने घर को छोड़कर आया हूँ, और तुम हो कि मुझसे बात ही नहीं कर रहीं। केवल मोबाइल में लगी हो, जैसे तुम्हारे लिए मेरा कोई अस्तित्व ही न हो।’

इस बार युवती ने युवक को झिड़कते हुए जबाव दिया, ‘मैं मोबाइल की वजह से ही तुम्हारे साथ हूँ और तुम्हें कुछ भी करने से रोक तो नहीं रही।’ और वह पुनः मोबाइल में मशगूल हो गई।

कथा लेखक को लगातार प्रेमी युगल पर नजर रखना कुछ अशिष्ट लग रहा था। अतः उसने कुछ देर के लिए अपनी दृष्टि दूसरी ओर कर ली। शायद! उसे झपकी आ गयी थी। जब उसने पुनः उन सीटों पर दृष्टि डाली। वे खाली थीं।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)