कविता

आधुनिकता की होड़

सूखी पड़ी है बंजर धरती।
दाने–दाने के लाले पड़ गए।।
गाँव बिका, जमीन बिकी,
जाने लोग,किसके पाले पड़ गए।।

उन मेहनतकश मजदूरों ने,
एक–एक ईंट जोड़ा ।
आधुनिकता की मशीनों ने,
आकर पल में तोड़ा।।
दर्द से कराहते, रोक न सके,
ईश के मन्दिरों में भी, ताले पड़ गए।।

बचपन बीता, जवानी आई,
भूल गए संस्कारों को।
अब अफसर कहलाने लगे,
तो छीन लिए अधिकारों को।।
शहर की हवा ने रुख ऐसा मोड़ा,
गाँव आते–आते पाँव में छाले पड़ गए।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]