दर्शन
“डॉक्टर साहब, आप बहुत ही अच्छे जगह में अपनी क्लिनिक चला रहे हैं।” बुजुर्ग मरीज ने कहा।
“हाँ, सो तो है। वैसे मैं रोज सुबह 7 से 9 बजे तक सिर्फ दो घंटे ही यहाँ बैठकर मरीजों का नि:शुल्क इलाज करता हूँ। सुबह दस से साढ़े पाँच बजे तक शहर के सरकारी अस्पताल में बैठता हूँ।” डॉक्टर ने मरीज का ब्लड प्रेशर चेक करते हुए बताया।
“कब से ये नेक काम कर रहे हैं डॉक्टर साहब ?” मरीज ने यूँ ही पूछ लिया।
“मुझे यहांँ काम करते हुए तीन साल हो गए हैं।” डॉक्टर ने बताया।
“बहुत बढ़िया। तब तो आप हर तीज-त्यौहार में पहाड़ी पर स्थित मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते होंगे ?” मरीज ने पूछा।
“हमारी ऐसी कहाँ किस्मत जी। यहांँ क्लिनिक में मेरे पहुंँचने से पहले ही मरीजों की लंबी लाइन लग जाती है। मैं यहांँ देशभर से आए हुए अनगिनत श्रद्धालुओं का इलाज कर उनके आशीर्वाद को ही ईश्वरीय कृपा समझता हूँ।” डॉक्टर ने कहा।
“हाँ, डॉक्टर को ईश्वर का दूसरा रूप यूँ ही नहीं कहा जाता डॉक्टर साहब। भगवान वहाँ ऊपर पहाड़ी बैठकर शायद अपने एक रूप में आपको यहांँ अपने चरणों में बिठाकर रखा है। मेरा आशीर्वाद सदा आपके साथ रहेगा। ईश्वर से प्रार्थना करता हूंँ कि वे आपकी हर मनोकामना पूरी करें।” कहते हुए वृद्ध मरीज ने उनसे विदा ली।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा