बोधकथा

लोक कथा – भूतिनी

प्राचीन काल की बात है। एक गाँव में एक संयुक्त परिवार रहता था। नई पीढ़ियों के साथ-साथ परदादा, परदादी, दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची से भरा-पूरा परिवार था। परिवार में गरीबी भले ही थी, किन्तु वे सभी आपस में प्रेम से रहते थे। अभाव के बीच भी, प्रेम का भाव उन्हें जोड़े हुए था।

अन्य बच्चों के साथ-साथ परिवार में पाँच लड़कियाँ भी थीं। जिनके नाम क्रमशः टूटी, फटी, फीकी, मरी व भूतिनी थे। लड़कियों के नाम तो न जाने किसने कैसे रखे? किन्तु वही प्रचलित थे। गरीब परिवारों में नाम के लिए ज्यादा सोच विचार नहीं किया जाता। कहा भी जाता है कि नाम में क्या रखा है? समाज में जिस नाम से जाना जाने लगे। वही नाम महत्वपूर्ण हो जाता है।

जैसा पारंपरिक समाज में होता है। लड़कियों को जिम्मेदारी मानकर जल्दी से जल्दी शादी करके विदा करना होता है। लड़कियों को पराई अमानत माना जाता रहा है। अब पराई अमानत को जितनी जल्दी विदा कर उऋण हो लिया जाय। उतना अच्छा माना जाता है। लड़की की शादी करने के बाद गंगा स्नान की परंपरा भी रही है। इसी कड़ी में बड़ी लड़की भूतनी की शादी के प्रयास किए जाने लगे।

शादी के प्रयासों की श्रृंखला में एक दिन लड़के का परिवार लड़की को देखने आने वाला था। परिवार में पूरी तैयारी थी। गरीब परिवार था। अतः संसाधनों का अभाव ही था। अतः जैसे ही आए, उन्हें पूछा गया कि आप खाट(चारपाई) पर बैठना पसन्द करेंगे या चटाई पर?

लड़के वालों को लगा कि चारपाई ही ठीक रहेगी। अतः उन्होंने कहा, ‘खाट, पर ही बैठ जाएंगे।’

उस समय घर के अधिकांश लोग बाहर काम पर गए थे। घर में केवल लड़कियाँ ही थीं। अतः दादी ने अपनी छोटी लड़की को ही आवाज लगाई।

‘टूटी! खाट लेकर आ।’

लड़के वाले आश्चर्यचकित रह गए। हमको टूटी खाट पर बिठाया जाएगा। वे बोले, ‘नहीं, नहीं, आप खाट रहने दीजिए। हम चटाई पर ही बैठ जाएंगे।’

अब खाट के स्थान पर मेहमानों ने चटाई का चुनाव किया था। अतः दादी ने दूसरी लड़की को आवाज लगाई, ‘फटी! चटाई लेकर तो आ।’

मेहमान सन्न रह गए। पहले टूटी खाट और अब फटी चटाई। वे बोले आप रहने दीजिए। हम तो जमीन पर ही बैठ जाते हैं, यह कहते हुए वे जमीन पर बैठ ही गए।

जब मेहमान जमीन पर बैठ गए। उनको पानी पिलाने के बाद पूछा गया कि वे चाय पीना पसन्द करेंगे या दूध?’

‘हम चाय ही पी लेंगे।’ उनकी ओर से जवाब आया।

अब तीसरी लड़की की बारी थी। अतः दादी ने आवाज लगाई, ‘फीकी! चाय लेकर आ।’

फीकी चाय का नाम सुनकर ही लड़के वालों का माथा चकराने लगा।

‘नहीं, नहीं, आप चाय रहने दीजिए। हम दूध ही पी लेंगे।’ उनमें से एक ने कहा।

काफी देर हो चुकी थी। अभी तक मेहमानों को जलपान भी नहीं कराया जा सका था। अब दादा ने ऊँचे स्वर में आवाज लगाते हुए कहा, ‘मरी! भेंस का दूध लेकर आ। जल्दी कर।’

‘मरी भेंस का दूध’ वाक्यांश सुनते ही, सभी मेहमानों ने एक स्वर में कहा, ‘नहीं, नहीं, हमें कुछ नहीं पीना। हमें जरूरी काम है और जल्दी जाना है। अतः आप जल्दी से लड़की को दिखा दीजिए।’

अब कोई विकल्प नहीं था। होने वाली दुल्हन को ही बुलाया जाना था। अतः पर-दादी ने आवाज लगाई, ‘अरे भाई! जल्दी से भूतिनी को बुलाओ।’

भू्तिनी का नाम सुनते ही, सभी मेहमानों ने सरपट दौड़ लगा ली। लड़की के परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे। वे भाग क्यों रहे हैं! वे पीछे से आवाज लगा रहे थे, ‘ रूको! रूको! इतनी भी क्या जल्दी है! आप देखने आए हैं तो कम से कम भूतिनी को देखकर तो जाओ।’

भागने वाले मेहमान पीछे मुड़कर देखने के लिए भी तैयार नहीं थे।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)