क्या करूँगा मैं बहुत मशहूर होकर
क्या करूँगा मैं बहुत मशहूर होकर,
कई लोग जलने लगेंगे मेरा नाम सुनकर।
मुझे अच्छा नहीं लगता किसी को उदास देखकर,
भले ही दुश्मन ही क्यों न खड़ा हो सामने होकर।
हमें मंजिल को पा लेना है चुपचाप रहकर,
भले ही न लोग पुकारे मेरा नाम लेकर।
मुझे न श्रेय चाहिए कोई भी काम करकर ,
बस काम हो गया तो होता संतोष सुनकर।
मुझे खुद पर गर्व होता है मुश्किल हालात से लड़कर,
ये हालात बदलनी चाहिए संघर्ष में हूँ यही सोचकर।
सूरज रौशनी है देता हमेशा चुपचाप रहकर,
फूलों को भी देखिए, है खुशबू बिखेरता शान्त रहकर।
कोई न रहा है न रहेगा जगत में अमर बनकर,
क्या कर लेंगे हम बहुत अभिमान करकर।
मैं फर्ज निभाता जाऊँगा चुपचाप रहकर,
तब अफशोश न होगा काल के करीब जाकर।
बहुत कुछ करना है हमें जग में मौन रहकर,
वरना टांग खींचेंगे कई मेरे पास आकर।
क्या करूँगा मैं बहुत मशहूर होकर,
कई लोग जलने लगेंगे मेरा नाम सुनकर।
— अमरेन्द्र