कविता

रक्तदान से डर क्यों?

रक्तदान सिर्फ दान या महादान नहीं हैयह मानव मूल्यों का सबसे बड़ा सम्मान है,जिसकी हम सब पर जिम्मेदारी हैजिसे हम सबको करना चाहिएमुंह मोड़कर भागने से बचना चाहिए।बस एक बार यह सोचिएकि आप ईश्वर तो नहींजो बड़े दानदाता बने फिरते हैं,आप किसी को मौत के मुंह से जाने से रोक सकते हैंया किसी को जीवन का दान देकर महान बन सकते हैं।आप कुछ भी नहीं कर सकतेसिर्फ इतना ही कर सकते हैंकिसी की जान बचाने का माध्यम बनएक छोटा सा प्रयास कर सकते हैंऐसा करके आप ईश्वर का दूत बन सकते हैं।डर लगता है तो बस एक बारतनिक इतना भर सोच लीजिएकि उसकी जगह पर आप स्वयंया आपका अपना भी तो कोई हो सकता है,तब आप भी वैसे ही व्यथित होतेदर दर भटक रहे होतेएक एक बूंद रक्त की भीख मांग रहे होतेमौत को अपने सामने देखकर भीखुद को बेबस, लाचार, असहाय पाते।तब क्या आप खुद ही खुदा बन पाते?नहीं न, फिर आज इतना विचार क्यों नहीं करते?अपनी मानवीय जिम्मेदारी मुँह क्यों चुराते?किसी अनजान प्राण के लिए रक्त का दान क्यों नहीं करते?रक्तदान महादान का उपहास उड़ाकरकिसी की मौत का बोझ अपने सिर लेने सेआखिर क्यों नहीं सिहरते और काँप जाते?रक्तदान का महादान करने मेंआप सबसे पीछे की लाइन में क्यों खड़े होते?रक्तदान से आखिर क्यों इतना डरते?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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