लघुकथा

पश्चाताप

राज अपने पिता की इकलौती संतान होने के कारण मिल रहे लाड़ प्यार से बहुत जिद्दी हो गया था।

   एक दिन उसने अपने पिता सिद्धार्थ से कहा – पापा अब आप भी कार ले लीजिए। हमारे सभी मित्रों के घर में कार आ चुकी है

    सिद्धार्थ ने उसे समझाते कहा बेटा! मेरा वेतन इतना नहीं है कि हम कार का खर्च उठा सकें। 

   लेकिन राज यह बात समझने को तैयार नहीं था और घर छोड़ने की धमकी देने लगा।

      सविता ने सिद्धार्थ को समझाया कि देखो -अब राज की जिद के आगे मत झुको। ऐसा न हो कि हमें पछताना पड़े।

      लेकिन सिद्धार्थ ने पत्नी सविता की बात को नजरंदाज कर बैंक से कर्ज लेकर कार खरीद ही लिया। 

       इधर राज कार आने के बाद चलाना सीखने के लिए लालायित हो उठा। वह सुबह जबरदस्ती अपने पापा को लेकर जाता और खुद चलाने की जिद करता। धीरे धीरे वह सीख भी रहा था। क्योंकि उसके अंदर जुनून था।

    आफिस जाते समय सिद्धार्थ कार की चाभी हमेशा अपनी आलमारी में बंद करके जाते थे। लेकिन एक दिन सुबह उनके आफिस से तुरंत आफिस पहुंचने का फोन आ गया। आनन फानन में नाश्ता कर वे चले गए और चाभी अलमारी में रखना भूल गए। राजू ने चाभी देखा तो चुपके से छुपा लिया।

      राज की मम्मी सविता रसोई में खाना बना रही थीं। इधर राज कार लेकर निकल गया। अभी वह अपने घर की गली भी नहीं पार कर पाया था कि एक बच्चा अचानक सामने आ गया। राज के हाथ पाँव फूल गए और कार एक खंभे से जा टकराई। कार को क्षतिग्रस्त होना ही था, राजू को भी गंभीर चोट आयी।

       मोहल्ले के लोगों ने उसके घर सूचना भेजकर उसे अस्पताल पहुंचाया और सिद्धार्थ को भी फोन कर दिया।

सिद्धार्थ भागा भागा अस्पताल पहुंचा। राज की हालत देख उसे अपनी भूल का पश्चाताप होने लगा।

         सविता भी गुस्से में उसे कोसने लगी। कि तुम्हारे लाड़ प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया है।अब पानी सिर से ऊपर आ गया तब पश्चाताप हो रहा है। मैं जब भी कुछ कहती तो तुम्हें बड़ा खराब लगता था। अब भोगो तुम भी और तुम्हारा लाड़ला भी। मैं तो दुश्मन हूँ न तुम दोनों की। मेरी तो कोई सुनने की ही तैयार नहीं।

         सिद्धार्थ पश्चाताप के आंसू लिए सिर झुकाए सविता की बातें सुनता रहा, इसके सिवा और कोई रास्ता भी तो नहीं था। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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