गीतिका/ग़ज़ल

गाँधीवाद

रामनाम जपते भाई
रंच न मन में सच्चाई

स्वच्छता के अभियान चले
नहीं सफाई हो पाई

अनगिन पेड़ कटें प्रतिदिन
हुई न पौध की रोपाई

लोग नाम लें ‘बापू’ का
राजनीति अति गरमाई

जाति-पाँति कब भेद मिटे
छुआछूत घर – घर छाई

चरखा-खादी की महिमा
सत्य – अहिंसा ने गाई

गाँवों में ‘बाजार’ घुसा
अब न स्वदेशी सुखदायी

राह देखता अंतिमजन
कहाँ सो गए विषपायी

भारत की छवि कैसी हो
गाँधीवाद ने बतलाई

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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