कविता

टूटते परिवार

टूटते परिवार की बात करते हो,
दिन-रात आहें भरते हो,
तनिक विचारो तो सही,
इसका दोष किस पर धरते हो?

बच्चों को सुसंस्कार दिए,
बहुत दिए बेहिसाब दिए,
सब कुछ दिया खुले दिल से,
क्या जिंदगी की किताब दिए!

बहती हुई बयार जमाने की,
कुछ तो बदलाव चाहती है,
छोटे तो बदले-सो-बदले,
बड़ों से भी तो बदलाव चाहती है!

ऐसा हो तो परिवार क्यों टूटेंगे!
कुछ वे मुड़ें कुछ हम मुड़ें,
हो सके अगर ऐसा तो फिर,
परिवार न टूटे, रहेंगे सब जन जुड़ें।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244