टूटते परिवार
टूटते परिवार की बात करते हो,
दिन-रात आहें भरते हो,
तनिक विचारो तो सही,
इसका दोष किस पर धरते हो?
बच्चों को सुसंस्कार दिए,
बहुत दिए बेहिसाब दिए,
सब कुछ दिया खुले दिल से,
क्या जिंदगी की किताब दिए!
बहती हुई बयार जमाने की,
कुछ तो बदलाव चाहती है,
छोटे तो बदले-सो-बदले,
बड़ों से भी तो बदलाव चाहती है!
ऐसा हो तो परिवार क्यों टूटेंगे!
कुछ वे मुड़ें कुछ हम मुड़ें,
हो सके अगर ऐसा तो फिर,
परिवार न टूटे, रहेंगे सब जन जुड़ें।
— लीला तिवानी