नदी
कैसी इक्कीसवीं सदी
सूख गई है प्रीति – नदी
पाप-पुण्य का ज्ञान नहीं
भूली नेकी और बदी
गठबंधन हैं टूट रहे
अप्रासंगिक सप्तपदी
चिंता छोटी बच्ची – सी
आ कंधे पर तुरत लदी
कंबल एक न मिल पाया
जिसको लगती है सर्दी
जग से खाली हाथ गए
धरी रही सारी नकदी
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र