गीतिका/ग़ज़ल

नदी

कैसी इक्कीसवीं सदी
सूख गई है प्रीति – नदी

पाप-पुण्य का ज्ञान नहीं
भूली नेकी और बदी

गठबंधन हैं टूट रहे
अप्रासंगिक सप्तपदी

चिंता छोटी बच्ची – सी
आ कंधे पर तुरत लदी

कंबल एक न मिल पाया
जिसको लगती है सर्दी

जग से खाली हाथ गए
धरी रही सारी नकदी

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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