कविता

सुमति-कुमति

सुमति-कुमति के संग में, जीवन बीता जाय,
जहाँ सुमति वहाँ जीत है, कुमति हार बलाय।

जग को बदलना मुश्किल है, खुद को बदलो मीत,
कहे सुमति यह रीत भली, इसमें ही है निज जीत।

घर-आंगन में खुशियां बसें, जहाँ सुमति का वास,
वैर-ईर्ष्या-द्वेष से कुमति, करती सत्यानाश।

मानव-मन चाहे अगर, सुमति रहे सदा संग,
रहे कुमति के साथ तो, हो सुख-शांति भंग।

जहाँ कुमति वहाँ सुमति नहीं, दोनों की भिन्न रीत,
कुमति अगर मजबूर करे, सुमति न पाती जीत।

सुमति कराए एकता, सद्गुण से सहयोग,
कुमति बिगाड़े काम सब, उपजाए बहु रोग।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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