सुमति-कुमति
सुमति-कुमति के संग में, जीवन बीता जाय,
जहाँ सुमति वहाँ जीत है, कुमति हार बलाय।
जग को बदलना मुश्किल है, खुद को बदलो मीत,
कहे सुमति यह रीत भली, इसमें ही है निज जीत।
घर-आंगन में खुशियां बसें, जहाँ सुमति का वास,
वैर-ईर्ष्या-द्वेष से कुमति, करती सत्यानाश।
मानव-मन चाहे अगर, सुमति रहे सदा संग,
रहे कुमति के साथ तो, हो सुख-शांति भंग।
जहाँ कुमति वहाँ सुमति नहीं, दोनों की भिन्न रीत,
कुमति अगर मजबूर करे, सुमति न पाती जीत।
सुमति कराए एकता, सद्गुण से सहयोग,
कुमति बिगाड़े काम सब, उपजाए बहु रोग।
— लीला तिवानी