कविता

अभिमान

मान करो अभिमान करो, कुछ भी करो बस! किसी को परेशान मत करो।सबका अपना अपना एकाधिकार हैपर अपने अधिकारों का इतना दुरुपयोग भी मत करोकि खुद को कहीं खड़ा होने लायक ही न पाओ।लोगों के लिए अभिमान की आड़ मेंतुम नज़ीर न बन जाओ,अभिमान चाहे जितना करो जी भर करो, खुलकर करोसोते जागते उठते बैठते करोआप आजाद हो जो चाहो, जब चाहो करोबस! अभिमान का गुरुर मत करो।गुरुर करते भी हो तो करोपर जब इतना बड़ा जिगरा होकि औरों का स्वाभिमान, अभिमान न लगेउसका अभिमान भी जब अपने से कम न लगे।आप बड़े अभिमानी हो पता है मुझेपर मेरे अभिमान को भी गुनाह मत समझो,सबके अभिमान का अपना अपना स्तर हैअपने अभिमान से किसी के अभिमान कोबिल्कुल कमतर न समझो।

*सुधीर श्रीवास्तव

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