लघुकथा

दहलीज

रागिनी अभी घर में घुसी ही थी कि उसने देखा कि उसका पति कुणाल अपनी ही माँ से अभद्रता कर रहा है, तो उसका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने अपना पर्स एक तरफ फेंका और पति को ढकेलते हुए चीखी, बहुत हो गया तुम्हारा तमाशा। अब तुम चुपचाप बाहर चले जाओ और दुबारा इस घर की दहलीज पर पैर भी मत रखना। वरना…..।
    वरना क्या करेगी तू।ये मेरा घर है, मेरी माँ है। बाहर मैं नहीं तू जायेगी।
     कुलाण की माँ ने भी आज फैसला करने का निर्णय कर लिया।
     बहू ने जो कहा, वही करना पड़ेगा तुझे।इसी में तेरी भलाई है। न मैं तैरी माँ हूँ और न ही तू मेरा बेटा। मर गया तू हमारे लिए।
       हम दोनों तेरे बिना भी जी लेंगे, परंतु अब तुझे इस घर और इसकी दहलीज से हमेशा के लिए दूर करके। इसके लिए जाना पुलिस कोर्ट कचेहरी जो भी करना पड़ेगा। हम दोनों करेंगे। पर तुझे इस घर में अब नहीं रहने देंगे।
        फिर तो रागिनी ने अंतिम चेतावनी दे दी, कि एक बात और भी कान खोलकर सुन लो। इस घर की संपत्ति से भी तुम्हें फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी।
        माँ पत्नी का यह रूप देख कुणाल विचलित हो गया और चुपचाप बाहर निकल गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921