मुक्तक/दोहा

नशामुक्ति पर दोहे

करता नशा विनाश है,समझ लीजिए शाप।
ख़ुद आमंत्रित कर रहे,आप आज अभिशाप।।

नशा बड़ी इक पीर है,लिए अनेकों रोग।
फिर भी उसको भोगते,देखो मूरख लोग।।

नशा करे अवसान नित,जीवन का है अंत।
फिर भी उससे हैं जुड़े,पढ़े-लिखे औ’ संत।।

मत खोना तुम ज़िन्दगी,जीवन सुख का योग ।
मदिरा,जर्दा को समझ,खड़े सामने रोग।।

नशा मौत का स्वर समझ,जाग अभी तू जाग।
कब तक गायेगा युँ ही,तू अविवेकी राग।।

नशा आर्थिक क्षति करे,तन-मन का संहार।
सँभल जाइए आप सब,वरना है अँधियार।।

नशा लीलता हर खुशी,मारे सब आनंद।
आप कसम ले लीजिए,नशा करेंगे बंद।।

नशा नरक का द्वार है,खोलो बंदे नैन।
वरना तुम पछताओगे,खोकर सारा चैन।।

नशा मारकर चेतना,लाता है अविवेक।
नशा धारता है नहीं,कभी इरादे नेक।।

नशा व्याधि है,लत बुरी,नशा असंगत रोग।
तन-मन-धन पर वार कर, लाता ग़म का योग।।

— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]