लघुकथा

मर्यादा

विदेश से बेटा जब घर पहुंचा,तो उसके साथ उसकी नवविवाहिता पत्नी भी थी। बेटे ने जब पिता बताया कि उसने शादी कर ली है, तो पिता अवाक रह गया। फिर भी बेटे ने पिता से कहा – पापा हमें आशीर्वाद दीजिए।तब उसकी बहन बिखर पड़ी। बेशर्मी की हद है। आप बड़े हैं, पुरुष हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि बाप की मां मर्यादा को रौंदने का आपको अधिकार मिल गया। अच्छा है चुपचाप चले जाइए, अपनी पत्नी को लेकर। वरना इस बात के लिए तैयार हो जाइए कि मैं भी किसी को लेकर भाग जाऊँगी। फिर मत कहना कि मैंने घर परिवार की मर्यादा का खून कर दिया। तुम ऐसा नहीं कर सकती। भाई तैश में आ गया। तो बहन ने भी तैश में ही जवाब दिया- क्यों नहीं कर सकती? कौन रोकेगा मुझे, तुम! जिसे अपने बाप की मर्यादा का ख्याल नहीं रहा। तुम इस घर के वारिस हो, लेकिन मेरे लिए अब कुछ भी नहीं हो। मुझे तो वैसे भी दूसरे के घर जाना है। अगर तुम्हें कुछ भी करने की छूट है, तो मुझे भी इतना अधिकार है। अब फैसला तुम्हें करना है। बेटी का यह रूप देख पिता ने कहा- तू ठीक कह रही है बेटी। तू जो करना चाहे कर लेना। बस मेरी चिता को आग भी तू ही देना। मैं अपने बेटे को उसके सारे अधिकार से मुक्त करता हूँ। विवश बेटा अपनी पत्नी के साथ बिना किसी प्रतिरोध के वापस चला गया। शायद उसे मर्यादा का मतलब समझ में आ गया था।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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