श्रद्धेय महादेवी : नीर भरी दुख की बदली
वेदने तू यह बता दे
क्यों हृदय है श्रांत तेरा
चिर विरह की स्वामिनी तू
क्यों है मन उद्भ्रांत तेरा।
बस क्षणिक भर ही सही
तू मुझे इतना बता दे
नीर भरी बदली रही क्यों?
ना मिला क्यों नभ का एक कोना?
प्रेरणा तू है सभी की
एक पल को बस मेरी होना
आधुनिक मीरा कहे सब
क्या विष तुझे भी पड़ा था पीना?
प्रथम पूज्य गणपति की भाँति,
जी चाहे तुझको ही पूजना
सबकी ही तूलिका ये कहती
काव्य जगत की तू है प्रेरणा।
चाहती हूं पढ़ सकूँ बस
विरह विलित तृप्त उर वो
क्यों रिसता ही रहा जो
एक ही रस के सुर को ।
सच कहूँ हे वरद पुत्री
तेरी है जो काव्य साधना
नित्य प्रतिदिन मैं करूँ बस
उसकी ही सदा आराधना।
— सविता सिंह मीरा