कविता

अपने जन्मदिन पर

एक दिन वो भी थाजब अचानक घटाटोप अंधेरा बढ़ रहा थाबिल्कुल भी कुछ नहीं सूझ रहा थानिराशा का छत्रप डरा रहा था,झूठे सच्चे औपचारिक मनोबल बढ़ाने कानया खेल चल रहा था,हार जीत के बीच में द्वंद्व मचा थाकथित उम्मीद की डोर पकड़े तब मैं झूल रहा था।और एक आज का दिन हैमां शारदे की बड़ी कृपा हैजो ऐसा भी देखने को मिल रहा है,मेरा जन्मदिन मनाने का अनूठा सिलसिला चल रहा है,जाने कहाँ कहाँ से , कितने जाने अंजाने लोगों का हूजूमआज मेरे साथ खड़े हैं,हर मुश्किल में मुस्कराने को विवश कर रहे हैं,न रुकने, थकने और न ही बैठने दे रहे हैं।वैसे भी जीवन भला इतना आसान कहाँ होता है?जाने कितने दर्द सहना और हर आँसू पीना पड़ता हैफिर भी जीते रहना पड़ता है।बस इसै जीने का आधार बना लिया मैंने,जीने के लिए नहीं जिंदा रहने के लिएबेहतर ढंग से जीना सीख लिया मैंने।हर हाल में आगे बढ़ने का हुनर आ गया मुझमें,आप सबकी सीख को हथियार बना लिया मैंने,अकेले रहकर भी अकेलेपन को दूर कर लिया मैंने।आप सबके बीच हूं जब आज यहाँ मैं भीअपने होने का प्रमाण दे दिया मैंने,आप सबके लाड़ प्यार दुलार संग अशेष आशीषों, शुभेच्छाओं कोपूरी ईमानदारी से स्वीकार कर लिया मैंने,पूरी विनम्रता से आप सबके चरणों मेंशीष भी अब झुका लिया मैंनेएक और जन्मदिन आज मना लिया मैंने नहीं,आप सबके साथ मुस्करा दिया मैंने।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

Leave a Reply