ग़ज़ल
सजी दिल की महफ़िलें ही, चले ही आइये हमदम।
ग़ज़ल कुछ गीत हमको भी, खुल कर सुनाइये हमदम।।
अदा ये रूठने की अब, सुनो हम जानते ही हैं।
यही हम तो कहे जाते, अभी तो मान जाइये हमदम ।।
सुकूं मिलता इधर देखो, पल अब आप ही कर लें।
चले हैं मुँह किधर मोड़े, यहाँ अब आइये हमदम।।
गरीबों के नसीबों की, अभी हम बात करते हैं।
सपन देखे सभी सुन लो, गढ़े अब जाइये हमदम।।
छिपाते फिर रहे किससे, न जाने क्यूँ छिपाते हो।
सुनो सब राज़ दिल के ही, अभी बतलाइये हमदम।।
सुना ये हुस्न का जलवा, दिखाने के लिए ही है।
उठा के आप चिलमन, चेहरा दिखलाइये हमदम।।
बसो अब आ हमारे दिल, खुले हैं द्वार देखो तो।
ख़ज़ाना इश्क़ से भरता, हमीं से पाइये हमदम।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’