कहानी

काला दिल या रंग?

होटल से निकलते ही ओटो रिक्शा मिल गया। रिक्शे वाले ने अपने आप ही मेरे पास आकर ओटो रोक लिया था।

मैंने उसे पूछा, ‘बस अड्डे चलोगे?

‘हाँ, आइए बैठिए।’ ओटो वाले ने कहा।

मैंने पुनः उसको पूछा, ‘किराया कितना लगेगा?’

‘चालीस रुपए।’ ओटो वाले ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

मैं उस क्षेत्र से परिचित नहीं था। होटल से निकलने से पूर्व ही मैंने तय कर लिया था कि ओटो बुक नहीं करूँगा और सामान्य सवारी की तरह बस अड्डे के लिए यात्रा करूँगा। केवल 12 किलोमीटर की यात्रा है। वीआईपी संस्कृति मुझे कभी पसंद नहीं रही।

सरकारी यात्रा है। सरकार के द्वारा समस्त व्ययों का भुगतान किया जाना है। फिर भी सरकारी पैसे को खर्च करते समय भी मितव्ययिता क्यों नहीं अपनाई जानी चाहिए!

सरकारी पैसा देश का पैसा है। उसका मितव्ययितापूर्ण सदुपयोग करना ही देशभक्ति है। लापरवाही से अधिव्यय करना देश के साथ गद्दारी है। जन परिवहन के साधनों का प्रयोग करना पर्यावरण व सरकारी नीति के अनुरुप है। इसका प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना ही चाहिए। समस्त संसार को ज्ञान देने का दंभ भरने वाला अध्यापक समूह ही इस बात का ध्यान नहीं रखे, यह किसी भी प्रकार से औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता।

मेरे ओटो में बैठने के बाद कुछ आगे जाकर एक व्यक्ति और मेरे बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया। उसी समय उसी व्यक्ति के साथ एक युवती भी ओटो में आई किन्तु वह चालक से आग्रह करके आगे चालक की बगल वाली सीट पर बैठ गयी।

युवती ने कुछ आगे चलकर ही चालक से कहा, ‘आगे श्रृंगार सामग्री की दुकान पर थोड़ी देर के लिए रोक लेना।’

उसकी बात सुनकर मेरे बगल में बैठा व्यक्ति मुस्कराने लगा और मेरी ओर मुखातिब होकर धीरे से( इस सावधानी के साथ कि युवती सुन न ले) बोला, ’इस काली भैंस को श्रृंगार सामग्री से क्या फर्क पड़ेगा? इसे कौन देखेगा!’

अब उन महापुरुष से कौन कहता, ‘वह युवती तो सांवला रंग होते हुए भी अपने आपको श्रृंगार से सुन्दर बनाने के प्रयत्न में है। उनका काला दिल तो किसी सौन्दर्य प्रसाधन से सुन्दर नहीं हो पाएगा।’

मैंने अभी तक उस व्यक्ति और युवती को देखा ही न था। अनावश्यक रूप से किसी को देखना, मैं उचित नहीं समझता। मैं अभी तक उस व्यक्ति और उस युवती को साथ-साथ समझ रहा था। वे दोनों एक ही ई-रिक्शा में से उतर कर ओटो में बैठे थे।

उस व्यक्ति का इस प्रकार किसी महिला के लिए टिप्पणी मुझे अच्छी नहीं लगी। मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीें दिया। ऐसे लोगों की उपेक्षा ही उचित व्यवहार है।

उस व्यक्ति की टिप्पणी के बाद मेरा ध्यान उस युवती की ओर गया। मैंने उस पर नजर डाली। 20-22 वर्ष की युवती रही होगी। श्रृंगार की दुकान पर वह क्यों उतरना चाहती है? वह श्रृंगार करे या न करे? रास्ते चलते एक अपरिचित व्यक्ति को इस पर अपने विचार करने की क्या आवश्यकता है? ये विषय महिलाओं का अपना विषय है। राह चलती महिलाओं के लिए इस प्रकार टिप्पणी करने की पुरुषों की सोच न केवल महिलाओं के स्व-निर्णय के अधिकारों का हनन हैं, वरन अपने विचारों की संकीर्णता के कारण अपने विकास को भी बाधित करना है।

महिलाओं को आजादी और सम्मान देना, संपूर्ण समाज के हित में है। इस सत्य को हम सभी को समझना होगा। हाँ! एक बात अवश्य ही उल्लेखनीय थी कि वह ओटो वाला पूर्ण पेशेवर अंदाज का परिचय देते हुए किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर रहा था।

उस युवती ने एक स्थान पर ओटो रुकवाया और ओटो वाले से थोड़ी देर रुकने के लिए कहा।

‘नहीं, यह संभव नहीं है। मैं सवारियों को रोककर खड़ा नहीं रह सकता। आप दूसरे ओटो से आ जाइएगा।’ ओटो वाले ने विनम्रता के साथ कहा।

युवती के काले रंग को अपने काले दिल में बसाए रखने वाले सज्जन अभी भी युवती की गतिविधियों पर छिपी हुई नजर रखे हुए थे।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)