गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रंग कितने बदल गया पानी,
हाथ से अब निकल गया पानी।

कोई गढ्ढा हो ताल, सागर हो,
घर हो कैसा भी पल गया पानी।

सर्द सागर के साथ देखा जब।
गर्म सहरा को ख़ल गया पानी।

वो पसीना है, कभी आँसू भी,
कितने चेहरों में ढल गया पानी।

वक्त आया तो बर्फ जैसा था,
वक्त आया पिघल गया पानी।

आग ऐसी लगी है दुनिया ने,
आज पानी से जल गया पानी।

साथ जय के तुम्हारी महफिल में,
एक गाके ग़ज़ल गया पानी।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से

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