गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुझमें भी खुशबू आये।
लेकर तुम जादू आये।
सच के पथ पर चलना है,
मैं आऊं या तू आये।
ऐसे काम नहीं करने,
अपमानों की बू आये।
करतूतें ऐसी करते,
सपनों को क्या छू पाये।
नील गगन में उड़ते थे,
वापस गिर कर भू आये।
इस प्रचण्ड गर्मी में तो,
प्रतिक्षण बहती लू आये।
घोर अंधेरों से लड़ने,
धरती पर जुगुनू आये।
सूरज, चांद सितारों को,
वो भी उड़कर छू आये।
अधिकारों की छाया में
कर्तव्यों की बू आये।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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