चाह मुझे सम्मान की!
मिल गई मुझे अद्भुत झप्पी जादुई,
ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास की।।
हौसले को मिली साहस-शक्ति,
पाँखें फैला उन्मुक्त उड़ान की।।
ऐतबार मुझे अपने आप पर,
लिखूं गाथा उज्जवल भविष्य की।।
धार लूंगी रूप माँ दुर्गा, काली का,
निरस्त कर दूं दुर्भावना दुराचारी की।।
अबला नहीं मैं, न मैं पराधीन नारी,
सशक्त, सक्षम, गर्जना हूं सिंहनी की।।
रीति-रिवाज के बंधनों से मुक्त हूं मैं,
नहीं चाहिए इजाजत खुलकर हंसने की।।
संस्कारी मन मेरा, एहसास कर्तव्य का,
स्वतंत्र हूं, स्वच्छंद नहीं, चाह मुझे सम्मान की।।