क्यों नहीं बरसता दुनियाँ है परेशान
बादल बरसे हल्के हल्के
धरा भी मन्द मन्द मुस्कुराई
वनस्पति के चेहरे पर आई रौनक
ठंडी ठंडी चले पुरवाई
पशु पक्षी जीवजन्तु सब
बारिश की बूंदों से खेलते
बेहाल थे बरसती अग्नि से
बेचैन थे बहुत दुख झेलते
आखिर इन्द्र को दया जो आई
बंधी बारिश को दिया जो खोल
पपीहे की प्यास बुझ गई
जीवन मिला उसको अनमोल
कहीं पर बारिश कहीं पे सूखा
किसी को भरपेट कोई है भूखा
गरीब की कोई कद्र नहीं
दुनियाँ का यह दस्तूर है अनूठा
दो बूंदों की आस में हाथ ऊपर उठाए
एकटक देख रहा बिना आंख झपकाए आसमान
क्यों नहीं बरसता दुनियाँ है परेशान
सब जलने के बाद बरसेगा तो फिर आएगा किस काम
— रवींद्र कुमार शर्मा