गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़िन्दगी दी है ख़ुदा ने ज़िन्दगी अच्छी लगी।
नूर हैं मे रे नबी यूँ रौशनी अच्छी लगी।

कौन है सच्चा हितैषी ये पता तब ही चला,
कुछ दिनों के वास्ते यूँ मुफलिसी अच्छी लगी।

ज़िन्दगी से खास मुझको कुछमुहब्बत थी नहीं,
ज़िन्दगी है वो मेरी यूँ ज़िन्दगी अच्छी लगी।

शान शौकत में पली है पर नहीं को ई गुरूर,
हर घड़ी मुझको सनम की सादगी अच्छी लगी।

वो मेरा मह बूब शायर बन गया यूँ ही नहीं,
है तग़ज़्ज़ुल बा असर यूँ शायरी अच्छी लगी।

— हमीद कानपुरी

तग़ज़्ज़ुल = मधुर

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415