छतरियां
रामलाल ने फौजियों के आने-जाने वाली पहाड़ी पर अपनी चाय की टपरी खोली थी. फौजी देश की सेवा कर रहे थे और वह फौजियों की. बिस्कुट, रस्क और इलायची वाली सोंधी खुशबू वाली चाय का सामान तो हमेशा तैयार रहता ही, बारिश में गरमागरम पकौड़ों का भी इंतजाम रहता था. पैसों की चिंता उसे नहीं रहती थी, जो दे जाता, नहीं दे जाता बाबा रामलाल का आशीर्वाद सबके साथ रहता.
एक दिन बाबा टपरी पर नहीं थे, फौजियों ने बिस्कुट खाए, चाय बनाकर पी और 200 रुपये रखकर चले गए. अगली बार फौजियों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा कि, टपरी में उनको बारिश से बचाने के लिए बाबा ने छतरियां भी लाकर रख दी थीं.
— लीला तिवानी