लघुकथा

छतरियां

रामलाल ने फौजियों के आने-जाने वाली पहाड़ी पर अपनी चाय की टपरी खोली थी. फौजी देश की सेवा कर रहे थे और वह फौजियों की. बिस्कुट, रस्क और इलायची वाली सोंधी खुशबू वाली चाय का सामान तो हमेशा तैयार रहता ही, बारिश में गरमागरम पकौड़ों का भी इंतजाम रहता था. पैसों की चिंता उसे नहीं रहती थी, जो दे जाता, नहीं दे जाता बाबा रामलाल का आशीर्वाद सबके साथ रहता.
एक दिन बाबा टपरी पर नहीं थे, फौजियों ने बिस्कुट खाए, चाय बनाकर पी और 200 रुपये रखकर चले गए. अगली बार फौजियों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा कि, टपरी में उनको बारिश से बचाने के लिए बाबा ने छतरियां भी लाकर रख दी थीं.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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